रूकमणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं वह नारायण से दूर ही नहीं रह सकती : दुर्गेश वशिष्ठ

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सिकंदराराऊ : क्षेत्र के गांव जिरौली कलां स्थित हनुमानजी मंदिर पर चल रही संगीतमयी श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन कथावाचक पंडित दुर्गेश वशिष्ट शास्त्री जी ने महारास,मथुरा गमन,उद्धव चरित्र,श्रीकृष्ण-रूक मणी विवाह प्रसंग सुनाया। श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीकृष्ण-रुकमणी विवाह को एकाग्रता से सुना। श्रीकृष्ण-रुकमणी का वेश धारण किए बाल कलाकारों पर भारी संख्या में आए श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया। श्रद्धालुओं ने विवाह के मंगल गीत गाए।
प्रसंग में श्री वशिष्ठ ने कहा कि रुकमणी विदर्भ देश के राजा भीष्म की पुत्री और साक्षात लक्ष्मी जी का अवतार थी। रुकमणी ने जब देवर्षि नारद के मुख से श्रीकृष्ण के रूप, सौंदर्य एवं गुणों की प्रशंसा सुनी तो उसने मन ही मन श्रीकृष्ण से विवाह करने का निश्चय किया। रुकमणी का बड़ा भाई रुक्मी श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था और अपनी बहन का विवाह चेदिनरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से कराना चाहता था। रुकमणी को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने एक ब्राह्मण संदेशवाहक द्वारा श्रीकृष्ण के पास अपना परिणय संदेश भिजवाया। तब श्रीकृष्ण विदर्भ देश की नगरी कुंडीनपुर पहुंचे और वहां बारात लेकर आए शिशुपाल व उसके मित्र राजाओं शाल्व, जरासंध, दंतवक्त्र, विदु रथ और पौंडरक को युद्ध में परास्त करके रुक्मणी का उनकी इच्छा से हरण कर लाए। वे द्वारिकापुरी आ ही रहे थे कि उनका मार्ग रुकमी ने रोक लिया और कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। तब युद्ध में श्रीकृष्ण व बलराम ने रुकमी को पराजित करके दंडित किया। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने द्वारिका में अपने संबंधियों के समक्ष रुकमणी से विवाह किया।
उन्होंने कहा कि रूकमणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं वह नारायण से दूर ही नहीं रह सकती। यदि जीव अपने धन को भगवान के काम लगाये तो ठीक नहीं तो अन्य मार्गो से हरण हो ही जाता है। धन को परमार्थ में लगाना चाहिए। जब कोई लक्ष्मी नारायण को पूजता है या उनकी सेवा करता है तो उन्हें भगवान की कृपा स्वयं प्राप्त हो जाती है।

INPUT – VINAY CHATURVEDI

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