. पंचामृत शिव स्नान से जन्मों के पापों से मिलेगी मुक्ति : स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज 

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श्रावण मास यानि भगवान शिव का अत्यंत प्रिय महीना जिसमें शिवत्व को प्राप्त करने का एक मात्र साधन उनका जलाभिषेक है। इस बार सावन महीने में हुई वृद्धि से देवाधिदेव की पूजा आराधना को अधिक समय मिलेगा। आज सावन के पहले सोमवार को शिवभक्तों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्तों के द्वारा विशेष पूजा अर्चना एवं रुद्राभिषेक अनुष्ठान किये जाएंगे।
वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने सावन के पहले सोमवार की पूजा एवं रुद्राभिषेक के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि शिवपुराण के रुद्र संहिता में सावन मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व बताया है। मान्यता है कि रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव हर मनोकमना पूरी करते हैं साथ ही इससे ग्रह जनित दोष और रोगों से भी मुक्ति मिलती है।
सावन में भगवान शिव की आराधना और कष्टों के निवारण हेतु विभिन्न वस्तुओं से रुद्राभिषेक करने को लेकर स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बताया कि सनातन धर्म में यह सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली पूजा मानी जाती है। जिसका फल भगवान शिव प्रसन्न होकर तत्काल देते हैं।सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा में हैं।असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें,भवन वाहन के लिए दही से अभिषेक करना चाहिए,लक्ष्मी प्राप्ति के लिए गन्ने के रस से,धनवृद्धि के लिए शहद एवं घी से,तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। रोगमुक्ति हेतु इत्र से,पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें,ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/ गंगाजल से रुद्राभिषेक करें। शिव पूजा विधान के बारे में स्वामी जी ने बताया कि भगवान शिव के रुद्राभिषेक में पंचामृत स्नान का महत्त्व है जिसमे दूध,दही,घी,शहद और बूरा से स्नान करवाकर उससे मिश्रित पंचामृत को तैयार कर स्नान करवाया जाता है तथा भाँग, धतूरा, बेलपत्र, शमीपत्र भी शिव जी को अर्पित करने से जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं।

INPUT – VINAY CHATURVEDI

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