ज्येष्ठ अमावस्या कब है, जानें महत्व, तिथि, पूजा विधि और मुहूर्त
1 min read19 मई दिन शुक्रवार को ज्येष्ठ अमावस्या का पर्व मनाया जाएगा। शास्त्रों में सभी अमावस्याओं में ज्येष्ठ अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर जप-तप व दान आदि धार्मिक कार्य किए जाते हैं। ज्येष्ठ अमावस्या पितरों की शांति के लिए पिंड दान, तर्पण और भोजन कराने के लिए शुभ माना गया है। इस दिन शनि जयंती और वट सावित्री का व्रत भी रखा जाएगा। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु, शनिदेव और बरगद के पेड़ की पूजा करने का विधान है। ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत और शनि जयंती के होने से इस तिथि का महत्व बढ़ गया है। इस अमावस्या का धार्मिक दृष्टि से खास महत्व है, क्योंकि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से सात जन्मों के पाप और पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है। अमावस्या तिथि के स्वामी पितरों को बताया गया है इसलिए इस तिथि पर व्रत पूजन करके पितरों को तर्पण व पिंड दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं शनिदेव की उपासना करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या व महदाशा से मुक्ति मिल जाती है। शनि जयंती के साथ इस दिन महिलाएं पति की लंबी आयु और समृद्धि के लिए वट सावित्री का व्रत रखती हैं इसलिए उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को बहुत पवित्र, पुण्य फलदायी और सौभाग्यशाली माना गया है।
ज्येष्ठ अमावस्या 19 मई 2023 दिन शुक्रवार
ज्येष्ठ अमावस्या की शुरुआत – 18 मई, रात 9 बजकर 42 मिनट से
ज्येष्ठ अमावस्या का समापन – 19 मई, रात 9 बजकर 22 मिनट पर
अमावस्या तिथि स्नान मुहूर्त – 19 मई, सुबह 4 बजकर 59 मिनट से 5 बजकर 15 मिनट तक
शनिदेव पूजा मुहूर्त – 19 मई, शाम 6 बजकर 42 मिनट से रात 7 बजकर 3 मिनट तक
वट सावित्री पूजा मुहूर्त – 19 मई, सुबह 5 बजकर 43 मिनट से सुबह 8 बजकर 58 मिनट तक
- ॐ शं शनैश्चराय नमः
- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं शनैश्चराय नमः
- ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
- ॐ नमः शिवाय
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं नमः
- ॐ नमो नारायणाय
- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्
- ज्येष्ठ अमावस्या पर पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दें और बहते जल में तिल प्रवाहित करें। पितरों की शांति के लिए पिंडदान व तर्पण कर ब्राह्मण भोज कराव सकते हैं।
- अगर बाहर स्नान करना संभव नहीं है तो घर पर ही जल में गंगाजल मिलाकर ईष्ट देवों का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए।
- ज्येष्ठ अमावस्या पर किए गए तीर्थ स्नान व दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और पितृ दोष भी दूर होता है। इसके बाद पीपल के पेड़ पर जल, अक्षत, सिंदूर आदि चीजें अर्पित करें और 11 परिक्रमा करें।
- ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती भी है इसलिए शनि मंदिर जाकर शनिदेव की पूजा भी करें। शनिदेव को सरसों का तेल, काले तिल, काला कपड़ा और नीले फूल अर्पित करें। फिर शनि मंत्र व शनि चालीसा का पाठ करें।
- वट सावित्री का व्रत करने वाली महिलाएं इस दिन यम और बरगद के पेड़ की पूजा करें और दान दक्षिणा अवश्य करें। साथ ही सुहाग की चीजें भी गरीब व जरूरतमंद महिलाओं में बांट दें।