नव वर्ष पर दुर्गा उपासना कर राष्ट्र को बनायें शक्तिशाली : स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज

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सिकंदराराऊ : नया वर्ष मनाने की परंपरा विश्व में जगह के हिसाब से अलग अलग है। यहां तक कि अलग अलग धर्म और संप्रदाय भी नववर्ष को अलग अलग तिथियों में मनाते हैं। सनातन धर्म के अनुयायी नव वर्ष को नव संवत्सर के रूप में धूमधाम से अपना नववर्ष मनाते हैं।चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि के साथ नव संवत्सर आरंभ होता है। पिंगलनाम के इस नवसंवत्सर की शुरुआत नवरात्रि के साथ 22 मार्च बुधवार को वृश्चिक लग्न में होगी जिसके राजा बुध तथा शुक्र मंत्री होंगे। तीस वर्ष बाद शनि के कुंभ राशि में प्रवेश एवं गुरु के बारह वर्ष बाद मेष राशि में गोचर करने के कारण इस संवत्सर का महत्व और भी बढ़ गया है।
वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख एवं ज्योतिष शास्त्र के विद्वान ज्योतिर्विद स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने वैदिक नवसंवत्सर के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि भारतीय संस्कृति अत्यंत प्राचीन है, विदेशी आक्रांता समय समय पर देश को लूटने आये और आर्थिक क्षति भी पहुंचाई परन्तु संत महात्माओं के तप और त्याग की वजह से भारतीय संस्कृति को चुराने में असफल रहे। नव वर्ष का मतलब एक नई ऊर्जा का संचार है जो कि सनातन संस्कृति में देखा जा सकता है,इस समय पूरी प्रकृति नए स्वरूप में निखर रही होती है तथा पतझड़ के बाद पेड़ पौधे बसंत ऋतु में प्रवेश कर रहे होते हैं और उनके सूखे पत्तों की जगह नए नए हरे पत्ते, सुन्दर पुष्प उग रहे होते हैं,पूरी प्रकृति मानो नव वर्ष के स्वागत में हरी भरी हो जाती है।
इस बार हिंदू नववर्ष की शुरुआत दो बेहद शुभ योग शुक्ल और ब्रह्म योग में हो रही है।वहीं मीन राशि में गुरु और चंद्रमा की युति से गजकेसरी राजयोग का निर्माण होने जा रहा है। इस वर्ष का शुभारंभ बुधवार से होने की वजह से मंत्रिमंडल के राजा बुध रहेंगे जबकि भोग विलास व सुख संपत्ति के कारक शुक्र ग्रह मंत्री की भूमिका में होंगे। बुध के राजा होने की वजह से धार्मिक कार्य में लोगों की रुचि बढ़ेगी और स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता भी बढ़ेगी। लेकिन कुछ राज्यों में राजनीतिक उथल पुथल तथा धार्मिक कट्टरवाद भी बढ़ेगा वहीं देव गुरु बृहस्पति के अपनी स्वराशि में होने और लगन पर उनकी दृष्टि पडऩे के कारण दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी के अनुसार गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी चार ग्रहण का योग बन रहा है जिनमें दो सूर्यग्रहण और दो चंद्रग्रहण शामिल होंगे। पंचांग के अनुसार 20 अप्रैल को वर्ष का पहला सूर्य ग्रहण, तथा 14 अक्टूबर शनिवार को दूसरा सूर्यग्रहण लगेगा परन्तु दोनों सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखने के कारण इनका सूतक काल भारत में मान्य नहीं होगा। वर्ष का पहला चंद्र ग्रहण 5 मई 2023 शुक्रवार को जबकि दूसरा चंद्र ग्रहण 29 अक्टूबर को लगेगा।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने सभी सनातन प्रेमियों से नववर्ष उत्सव मनाने के विधान को लेकर अपील करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति एक अमूल्य और आधुनिक युग के लिए अत्यंत उपयोगी है जिसका संरक्षण एवं संवर्धन करना हम सभी भारतवासियों का कर्तव्य है,पश्चिमी सभ्यता भी कहीं न कहीं भारतवर्ष की संस्कृति को अपना रही है।हमारे नववर्ष का शुभारम्भ ही चैत्र नवरात्रि यानि शक्ति उपासना से किया जाता है,अतः नववर्ष की प्रातः कालीन बेला में अपने अपने परिवार सहित भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर अपने मकान की छत पर पताका फहरायें और माँ भगवती दुर्गा की पूजा आराधना से प्रारम्भ कर सकारात्मकता के साथ सात्विक रहकर शुभ कार्य करें तथा अशोक, आम आदि के पत्तों को कलावा में लपेटकर बंधनवार बनाकर मुख्य द्वार पर लटकायें सांय कालीन बेला में अपने घर के मुख्य द्वार पर कम से कम 5 दीपक जलाकर नववर्ष मनाएं।

INPUT- VINAY CHATURVEDI 

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