भगवान वामन ने अपने विराट स्वरूप से एक पग में बलि का राज्य नाप लिया था : अरुणाचार्य

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सिकंदराराऊ : जीवन में प्रभु भक्ति का विशेष महत्व है। प्रभु की भक्ति के बिना हमारा जीवन उसी तरह से निरर्थक हैं, जिस तरह से बिना फल-फूल के शुष्क वृक्ष है। जो व्यक्ति श्री रघुनाथ के सहारे रहते हैं, उन्हें जीवन में कोई भी कष्ट नहीं मिलता। उनके कष्टों को दूर करने के लिए प्रभु सदैव तत्पर रहते हैं।
यह बातें गांव नगरिया में चल रहे संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के चतुर्थ दिवस गुरुवार को कथावाचक पं. अरुणाचार्य पाराशर जी महाराज ने कही। उन्होंने समुद्र मंथन, वामन अवतार, श्रीराम कथा, श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की कथा का विस्तार से वर्णन किया।
कथावाचक ने कहा कि हम अपने जीवन में यदि नम्रता अपनाएं तो हमारे मोह का नाश स्वयं हो जाएगा और प्रभु के दर्शन और कृपा दोनों की प्राप्ति होगी। कथावाचक ने भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा सुनाते हुए कहा कि दैत्यों का राजा बलि बड़ा पराक्रमी राजा था। उसने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। उसकी शक्ति से घबराकर सभी देवता भगवान वामन के पास पहुंचे तब भगवान विष्णु ने अदिति और कश्यप के यहां जन्म लिया। एक समय वामन रूप में विराजमान भगवान विष्णु राजा बली के यहां पहुंचे उस समय राजा बली यज्ञ कर रहे थे। बली से उन्होंने दान मांगा। बलि ने कहा ले लीजिए। वामन ने कहा मुझे तीन पग धरती चाहिए। दैत्य गुरु भगवान की महिमा जान गए। उन्होंने बली को दान का संकल्प लेने से मना कर दिया। लेकिन बली ने कहा यदि ये भगवान हैं तो भी मैं इन्हें खाली हाथ नहीं जाने दे सकता। भगवान वामन ने अपने विराट स्वरूप से एक पग में बलि का राज्य नाप लिया, एक पैर से स्वर्ग का राज नाप लिया। बली के पास कुछ भी नहीं बचा। तब भगवान ने कहा तीसरा पग कहां रखूं। बली ने कहा मेरे मस्तक पर रख दीजिए। जैसे ही भगवान ने उसके ऊपर पग धरा राजा बली पाताल में चले गए। भगवान ने बली को पाताल का राजा बना दिया।
कथा व्यास ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की कथा सुनाते हुए कहा कि जब धरती पर चारों ओर अन्याय व अत्याचार बढ़ता है, तब धरती पर भगवान का अवतरण होता है, जो समाज को एक नई दिशा व दशा प्रदान करते हैं। कथा के दौरान सजीव झांकी भी सजाई गई। कथा का श्रवण करने काफी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।

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