श्री कृष्ण एवं सुदामा की अभिन्न मित्रता समाज के लिए प्रेरणा स्रोत: आईपीएस आदित्य वर्मा

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सिकंदराराऊ : क्षेत्र के ग्राम हुसैनपुर कोडरापुल पर श्रीमद् भागवत कथा के सप्तम दिवस पर कथा व्यास पुष्पेन्द्र शास्त्री जी का मुख्य अतिथि आदित्य प्रकाश वर्मा सेनानायक 43 वीं वाहिनी पीएसी एटा एवं विशिष्ट अतिथि समाजसेवी अमित यादव व मुकेश यादव जिला पंचायत सदस्य एटा ने पटका पहनाकर एवं माल्यार्पण कर स्वागत किया। अतिथियों का हरपाल सिंह यादव, महेश यादव संघर्षी, मीरा माहेश्वरी, संतोष पौरुष, साहित्य शर्मा कुक्कू, संजू यादव, श्रुर्ती यादव ने शाल व माल्यार्पण कर स्वागत किया ।
मुख्य अतिथि आदित्य प्रकाश वर्मा आई पी एस ने श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता पर प्रकाश डाला।
भागवत कथा के सप्तम दिवस की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। तथा कंस वध लीला का मार्मिक चित्रण किया गया।
कथा व्यास पुष्पेन्द्र शास्त्री जी ने कहा कि भगवान अकारण ही कृपा करते हैं। तब जीव के ह्रदय में स्वतः ही कृष्ण प्रेम जागृत होता है और वह वृंदावन की तरफ खींचा हुआ चला आता है।
उद्धव जैसा ब्रहम ज्ञानी भी ब्रज में आकर प्रेमी हो गया और सच है पूरे विश्व में कहीं भी यात्रा करके आ जाओ लेकिन जब तक ब्रज की यात्रा नहीं करोगे तब तक पूर्ण प्रेम प्राप्त नहीं होगा। यह ब्रज की भूमि प्रेम प्रदान करती है कृष्ण के प्रति।
कथा व्यास ने सुनाते हुए श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता की कथा श्रोताओं को श्रवण कराई।
महंत धीरेन्द्र ब्रह्मचारी जी महाराज ने कहा कि सुदामा ने कहा कि वह राजा श्रीकृष्ण का बचपन का मित्र है तथा वह उनके दर्शन किए बिना वहां से नहीं जाएगा। श्रीकृष्ण के कानों तक भी यह बात पहुंची। उन्होंने जैसे ही सुदामा का नाम सुना, उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। वे नंगे पांव ही सुदामा से भेंट करने के लिए दौड़ पड़े। दोनों ने एक-दूसरे को गले से लगा लिया तथा दोनों के नेत्रों से खुशी के आंसू निकल पड़े। श्रीकृष्ण सुदामा को आदर-सत्कार के साथ महल के अंदर ले गए। उन्होंने स्वयं सुदामा के मैले पैरों को धोया। उन्हें अपने ही सिंहासन पर बैठाया। श्रीकृष्ण की पत्नियां भी उन के आदर-सत्कार में लगी रहीं। दोनों मित्रों ने एक साथ भोजन किया तथा आश्रम में बिताए अपने बचपन के दिनों को याद किया। भोजन करते समय जब श्रीकृष्ण ने सुदामा से अपने लिए लाए गए उपहार के बारे में पूछा तो सुदामा लज्जित हो गया तथा अपनी मैली-सी पोटली में रखे चावलों को निकालने में संकोच करने लगा। परंतु श्रीकृष्ण ने वह पोटली सुदामा के हाथों से छीन ली तथा उन चावलों को बड़े चाव से खाने लगे। भोजन के उपरांत श्रीकृष्ण ने सुदामा को अपने ही मुलायम बिस्तर पर सुलाया तथा खुद वहां बैठकर सुदामा के पैर तब तक दबाते रहे जब तक कि उसे नींद नहींं आ गई। कुछ दिन वहीं ठहर कर सुदामा ने कृष्ण से विदा होने की आज्ञा ली। श्रीकृष्ण ने अपने परिवारजनों के साथ सुदामा को प्रेममय विदाई दी। इस दौरान सुदामा अपने मित्र को द्वारका आने का सही कारण न बता सका तथा वह बिना अपनी समस्या निवारण के ही वापस अपने घर को लौट गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी पत्नी तथा बच्चों को क्या जवाब देगा, जो उसका बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। सुदामा के सामने अपने परिवारीजनों के उदास चेहरे बार-बार आ रहे थे। परंतु इस बीच श्रीकृष्ण अपना कर्तव्य पूरा कर चुके थे। सुदामा की टूटी झोंपड़ी एक सुंदर एवं विशाल महल में बदल गई थी। उसकी पत्नी तथा बच्चे सुंदर वस्त्र तथा आभूषण धारण किए हुए उसके स्वागत के लिए खड़े थे। श्रीकृष्ण की कृपा से ही वे धनवान बन गए थे। सुदामा को श्रीकृष्ण से किसी प्रकार की सहायता न ले पाने का मलाल भी नहीं रहा। वास्तव में श्री कृष्ण सुदामा के एक सच्चे मित्र साबित हुए थे, जिन्होंने गरीब सुदामा की बुरे वक्त में सहायता की।
भागवत कथा में भाईचारा सेवा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश यादव संघर्षी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हरपाल सिंह यादव, संजू यादव, मयंक यादव, रविन्द्र यादव, रैना यादव, निरंजन यादव, देवा बघेल, आरव, रुद्र यादव,बीटू यादव, चन्द्रवती यादव, शौभा यादव, सीमा यादव, रामसेवक यादव, विजय यादव, राजपाल यादव, राजेंद्र यादव , राजकुमार आदि मौजूद थे।

vinay

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