महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है , और इसका हमारे जीवन में क्या महत्व है ।

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महाशिवरात्रि हिन्‍दुओं का प्रमुख त्‍योहार है. आदि देव महादेव के भक्‍त साल भर इस दिन की प्रतीक्षा करते हैं. मान्‍यता है कि महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, बेर और भांग चढ़ाने से भक्‍त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उसे महादेव की विशेष कृपा मिलती है. वैसे तो हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शिवरात्रि आती है, लेकिन फाल्‍गुन मास की कृष्‍ण चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है. पुराणों में महाशिवरात्रि का सर्वाधिक महत्‍व बताया गया है. हिन्‍दू मान्‍यताओं में साल में आने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. आपको बता दें कि इस बार 11 फरवरी को महाशिवरात्रि मनाई जा रही है।

शिवरात्रि मनाए जाने को लेकर तीन मान्‍यताएं जो सर्वाधिक प्रचलित हैं वो इस प्रकार हैं:
– एक पौराणिक मान्‍यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही शिव जी पहली बार प्रकट हुए थे. मान्‍यता है कि शिव जी अग्नि ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हु थे, जिसका न आदि था और न ही अंत. कहते हैं कि इस शिवलिंग के बारे में जानने के लिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया और उसके ऊपरी भाग तक जाने की कोशिश करने लगे, लेकिन उन्‍हें सफलता नहीं मिली. वहीं, सृष्टि के पालनहार विष्‍णु ने भी वराह रूप धारण कर उस शिवलिंग का आधार ढूंढना शुरू किया लेकिन वो भी असफल रहे.

एक अन्‍य पौराणिक मान्‍यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही विभन्नि 64 जगहों पर शिवलिंग उत्‍पन्न हुए थे. हालांकि 64 में से केवल 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में जानकारी उपलब्‍ध. इन्‍हें 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम से जाना जाता है.
– तीसरी मान्‍यता के अनुसार महाशिवरात्रि की रात को ही भगवान शिव शंकर और माता शक्ति का विवाह संपन्न हुआ था.

तभी से यह महा शिवरात्रि मनाई जाती है।

शिवरात्रि के एक दिन पहले, मतलब त्रयोदशी तिथि के दिन, भक्तों को केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। शिवरात्रि के दिन भक्तगणों को पूरे दिन के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। भगवान शिव से व्रत को निर्विघ्न रूप से पूर्ण करने हेतु आशीर्वाद मांगना चाहिए।

शिवरात्रि के दिन भक्तों को सन्ध्याकाल स्नान करने के पश्चात् ही पूजा करना चाहिए या मन्दिर जाना चाहिए। भक्तों को सूर्योदय व चतुर्दशी तिथि के अस्त होने के मध्य के समय में ही व्रत का समापन करना चाहिए।

शिवरात्रि से कुछ दिन पूर्व से ही लोग दूर-दूर से कांवर लेकर आते हैं और शिव जी को अर्पण करते हैं। ऐसा माना जाता है ऐसा करने से शिवजी भक्तों से बहुत ही प्रसन्न होते हैं और उनकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं

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