30 वर्षों बाद जयंती योग में मनाया जाएगा कृष्ण जन्मोत्सव : स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज

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अलीगढ : भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव देश भर में उल्लास के साथ मनाया जाता है,श्रीमद्भागवत एवं भविष्यपुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं चंद्रमा के वृष राशि गोचर के समय पर अर्धरात्रि में हुआ था। इसीलिए भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन इस पर्व को मनाया जाता है।श्री कृष्ण के जन्म समय की स्थितियां हर समय प्राप्त हों यह संभव नहीं है अत: ऎसे में जितने योग भी प्राप्त होते हैं उस अनुसार पर्व को मनाया जाता है। यही कारण है कि इस बार जन्माष्टमी पर्व की तिथियों में अंतर देखने को मिल रहा है। इस बार अष्टमी तिथि बुधवार दोपहर 03:37 मिनट से प्रारंभ होकर गुरुवार सांय 04:14 मिनट तक रहेगी और रोहिणी नक्षत्र बुधवार प्रातः 09:19 मिनट से गुरुवार 10:24 मिनट तक रहेगा। वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख एवं ज्योतिर्विद स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने वैदिक शास्त्र एवं पुराणों के प्रमाण देते हुए स्पष्ट किया कि इस बार जन्माष्टमी पर अर्द्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी तिथि का संयोग बन रहा है, इसके साथ ही रोहिणी नक्षत्र एवं चंद्रमा का वृषभ राशि गोचर होने का संयोग बन रहा है।इस योग को भी अत्यंत ही शुभ स्थिति दायक माना गया है यह शुभ योग बुधवार 6 सितंबर को लगने के कारण गृहस्थ जीवन वालों के लिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी बुधवार को मनाना अत्यंत शुभ रहेगा। निर्णय सिंधु के अनुसार अर्ध रात्रि को अष्टमी तिथि में यदि रोहिणी नक्षत्र का योग मिल जाए तो उसमें भगवान श्रीकृष्ण का पूजन अर्चन करने से तीन जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं। जन्माष्टमी के दिन 30 वर्ष के बाद इस तरह का शुभ योग देखने को इस बार मिल रहा है। स्वामी पूर्णानंदपुरी जी ने बताया कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र के योग से रहित हो तो केवला कही जाती है और रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो जयंती योग वाली कही जाती है। जयंती में यदि बुधवार का योग आ जाए तो वह अति उत्कृष्ट फल देने वाली कही जाती है। वैष्णव संप्रदाय के भक्त जन्माष्टमी पर्व गुरुवार को मनाएंगे। कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधान को लेकर स्वामी जी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा मध्य रात्रि में की जाती है, प्रातः जल्दी जगकर स्नानआदि से निवृत होकर लड्डू गोपाल सहित सभी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना कर व्रत का संकल्प लें। रात्रि पूजन के लिए भगवान का झूला सजाएं और मध्यरात्रि में भगवान श्रीकृष्ण का दूध, दही, घी, शहद, बूरा,पंचामृत एवं गंगाजल से अभिषेक कर उनको सुंदर वस्त्र पहनाकर श्रृंगार करें इसके साथ ही पूजा में उन्हें मक्खन,मिश्री,पंजीरी का भोग अर्पित कर आरती करें।

INPUT – VINAY CHATURVEDI

 

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