बैसाखी पर क्यों खाया जाता है सत्तू, जानें इसके खाने और दान करने के फायदे

1 min read
Spread the love

बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में आते हैं। ज्योतिषशास्त्र में मेष राशि को अग्नि तत्व की राशि कहा गया है। और सूर्य भी अग्नि तत्व के ग्रह हैं। ऐसे में जब मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तो गर्मी तेजी से बढ़ने लगती है। ऐसे में स्वास्थ्य की रक्षा के लिए शीतलता प्रदान करने वाली चीजों का सेवन और दान करने की परंपरा हिंदू धर्म में हैं ताकि जिनके पास साधनों की कमी है वह भी उन चीजों का उपभोग करके अपनी सुरक्षा कर पाएं। यही वजह है कि बैसाख और ज्येष्ठ महीने में हिंदू धर्म में शीतलता प्रदान करने वाली चीजों को दान करने की बात बतायी गई है।बैसाखी पर यही वजह है कि बिहार सहित कई क्षेत्रों में इस दिन सत्तू खाने और दान करने की परंपरा रही है। ज्योतिषीय दृष्टि से चने की सत्तू का संबंध सूर्य, मंगल और गुरु से भी माना जाता है। इसलिए कहते हैं कि, सूर्य के मेष राशि में आने पर सत्तू और गुड़ खाना चाहिए और इनका दान भी करना चाहिए। जो इस दिन सत्तू खाते हैं और इनका दान करते हैं वह सूर्य कृपा का लाभ पाते हैं। मृत्यु के बाद इन्हें उत्तम लोक में स्थान मिलता है और फिर नया जन्म लेने पर गरीबी का मुंह नहीं देखना पड़ता है। सत्तू का दान करने मात्र से सूर्य, शनि, मंगल और गुरु इन चारों ग्रहों की प्रसन्नता प्राप्त हो जाती है।

सत्यनारायण भगवान की जाती है पूजा

मेष संक्रांति पर गंगा स्नान, जप-तप दान आदि का विशेष महत्व है। साथ ही इस दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा भी की जाती है और कथा भी सुनी जाती है, जिसमें सत्तू का भोग लगाया जाता है और घर-घर प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है। इस दिन कई लोग सत्तू का शर्बत बनाकर दान करते हैं और पीते भी हैं।

मेष संक्रांति पर खत्म खरमास

सूर्य के मेष राशि में आने पर खरमास भी खत्म हो जाता है और शादी-विवाह के लिए शुभ मुहूर्त भी शुरू हो जाते हैं। बैसाखी पर गंगा स्नान करने के बाद नई फसल कटने की खुशी में सत्तू और आम का टिकोला खाया जाता है। इस दिन घरों में खाना नहीं पकाया जाता बल्कि सिर्फ सत्तू का ही सेवन करते हैं। इस दिन सत्तू के साथ मिट्टी के घड़े, तिल, जल, जूते आदि चीजों का भी दान किया जाता है।

INPUT – BUERO REPORT

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *