नवरात्रि के पहले दिन इन मंत्रों, विधियों और भोग से करें माता शैलपुत्री की पूजा, पाएंगे खूब लाभ
1 min readमां दुर्गा की पूजा के महापर्व चैत्र नवरात्रि का आरंभ आज से हो गया है। आज नवरात्र का पहला दिन है और आज मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा की जाएगी। मां शैलपुत्री पर्वत राज हिमालय की पुत्री कहलाती है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री माता पार्वती का रूप हैं और उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। तब उन्हें शिवजी जैसा वर प्राप्त हुआ था। ऐसी मान्यता है कि मां शैलपुत्री की पूजा करने से सुयोग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं मां शैलपुत्री का स्वरूप, पूजाविधि और भोग व मंत्र,पर्वत को शैल भी कहा जाता है और पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने की वजह से उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। मां शैलपुत्री को सती, हेमवती और उमा के नाम से भी जाना जाता है। मां का वर्ण श्वेत हैं और उन्होंने श्वेत रंग के वस्त्र धारण किए हुए हैं। मां शैलपुत्री की सवारी बैल है। उनके दांए हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल शोभायमान है। मां का यह स्वरूप सौम्यता और स्नेह का प्रतीक माना जाता है।नवरात्रि के पहले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करें और लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर मां दुर्गा की मूर्ति या फिर तस्वीर को उस पर स्थापित करें। फिर कलश स्थापना करके मां शैलपुत्री का व्रत करने का संकल्प लें। फिर मां शैलपुत्र की रोली, चावल और फूल से पूजा करें। इसके बाद मां को नए वस्त्र अर्पित करें और फिर धूप व दीप से आरती करें। उसके बाद शैलपुत्री माता की कथा पढ़ें, मंत्र और पढ़ें और भोग लगाएं। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। शाम को भी ऐसे की मां शैलपुत्री की पूजा करें।मां शैलपुत्री का वर्ण श्वेत है और उन्हें सफेद रंग की वस्तुएं सबसे प्रिय हैं। इसलिए उनकी पूजा में सफेद फूल अर्पित किए जाते हैं और सफेद वस्तुओं और दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। आप चाहें मो मिसरी या फिर बताशे का भी भोग मां को अर्पित कर सकते हैं। शाम की पूजा के बाद मखाने की खीर का भोग लगा सकते हैं।
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