7 को होलिका दहन, 8 को मनाया जायेगा फाग महोत्सव होलिका के अवसर पर बचाएँ प्रकृति लगाएं वृक्ष : स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज
1 min read
खुशियों और रंगों का पर्व होली देशभर में धार्मिक आस्था का प्रतीक है। इस बार होलिका दहन या छोटी होली 7 मार्च मंगलवार को वहीं फागोत्सव यानि रंगों की होली 8 मार्च बुधवार को मनाई जा रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में अत्यंत शुभ माना जाता है तथा प्रतिपदा तिथि पर रंगों और गुलाल से होली खेली जाती है।
वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख एवं ज्योतिर्विद स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने फाल्गुनी उत्सव के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि भारतवर्ष के अधिकांश प्रदेशों में फाल्गुन की पूर्णिमा मंगलवार को सांय 06:09 मिनट से पहले ही सूर्यास्त होने के कारण प्रदोषकाल लग जायेगा । स्मृतिशार ग्रन्थ के अनुसार यदि फाल्गुन की पूर्णिमा तिथि दो दिन प्रदोष को स्पर्श करे तब दूसरी पूर्णिमा में होलिका दहन किया जाना चाहिये तथा होलिका दहन प्रदोष काल में ही किया जाता है। ऐसे में फाल्गुन पूर्णिमा पर शाम के समय गोधूलि बेला में अगर भद्रा का प्रभाव हो तो होलिका दहन नहीं करना चाहिए। पूर्णिमा तिथि 6 मार्च सांय 04:17 मिनट से प्रारंभ होकर 7 मार्च सांय 06:09 मिनट तक रहेगी वहीं भद्रा काल का मुहूर्त 6 मार्च सायं 4:48 मिनट से 7 मार्च प्रातः 5:14 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। अतः होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 7 मार्च मंगलवार सांय 6:24 मिनट से रात्रि 8:51 मिनट तक रहेगा। धृति योग 6 मार्च रात्रि 08:54 से 7 मार्च रात्रि 9:14 तक रहेगा। इसके बाद शूल योग लगेगा। अभिजीत मुहूर्त प्रातः 11:46 से 12:33 तक,अमृत काल मुहूर्त सांय 07:22 से 09:07 तक रहेगा। इस दिन कुंभ राशि में सूर्य, बुध और शनि का त्रिग्रही योग बनेगा। इसी के साथ ही मीन राशि में गुरु और शुक्र की युति से भी शुभ योग बन रहे हैं। शुक्र के अपनी उच्च राशि में होने से मालव्य योग और गुरु के अपनी स्वराशि पर होने से हंस राजयोग बन रहा है।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने होलिका दहन के अवसर पर विशेष पूजन अर्चन एवं उससे जुड़े उपायों की जानकारी देते हुए बताया कि प्रातः दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर होलिका दहन वाले स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। अब रोली, अक्षत, फूल, माला, हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, रंग, सात प्रकार के अनाज से होलिका की पूजा आराधना कर भगवान नरसिंह का ध्यान करें। पूजा के बाद कच्चे सूत से होलिका की 5 या 7 बार परिक्रमा करके बांध दें तत्पश्चात शुभ मुहूर्त में किसी विद्वान ब्राह्मण अथवा घर के किसी बड़े बुजुर्ग व्यक्ति से होलिका की अग्नि प्रज्वलित करवाएं, होलिका की अग्नि में जौ की फसल के एक एक बीज से आहुति दें जिससे जीवन में निराशा दूर होकर परिवार के सभी लोग हमेशा रोगों से मुक्त स्वस्थ और खुशहाल जीवन पाकर माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मानसिक रोग से मुक्ति हेतु एक सूखा नारियल, काले तिल, लौंग और पीली सरसों सर के उपर वामावर्त दिशा में घुमाकर होलिका की अग्नि में समर्पित करना चाहिए । लंबे समय से किसी भी प्रकार के शारीरिक रोग से पीड़ित व्यक्ति को होलिका दहन की भस्मी का तिलक लगाने से रोग से मुक्ति मिलती है। आर्थिक समस्याओं से मुक्ति हेतु होलिका दहन वाले दिन घर के मुख्य द्वार पर हल्का गुलाल डालकर दो मुखी दीपक जलाना चाहिए।
सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ति के लिए विशेष उपाय – गोला 1 बड़ा, गोला 1 छोटा, कमल गट्टा 11, लौंग 11 जोड़ा, इलायची 11, सुपारी 5, पीली सरसों थोड़ी सी, गुग्गल थोड़ा सा, लोहबान थोड़ा सा, कपूर थोड़ा सा देशी घी थोड़ा सा, काले तिल थोड़े से, कलाबा की गुल्ली 1, लाल कंद 1 मीटर।
विधि – छोटे गोले को कद्दूकस में कस कर कड़ाई में (लाल होने तक) भून लें। उसके बाद बड़े गोले को ऊपर से काट कर उसमें सारी सामग्री भरकर और भुना हुआ गोले का बुरादा भी भरकर उसको बन्द करके कलावा से बांधकर लाल कन्द में बंद करके अपने और अपने परिवार के सभी सदस्यों के ऊपर से 7 बार उल्टी तरफ से (एंटी क्लॉक) उतार कर ,अपनी मनोकामना स्मरण करते हुए चौराहे की होली में छोड़ दीजिए ।
स्वामी जी के अनुसार होलिका दहन का पर्व बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है। पुराणों के अनुसार, दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भगवान के अलावा किसी अन्य को नहीं मानता। इस बात से क्रोधित होकर उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए। होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुकसान नहीं पहुंचा सकती। परन्तु भगवान विष्णु की कृपा से ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गयी तथा भक्त प्रह्लाद सकुशल रहे। होली का पर्व संदेश देता है कि ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने प्रकृति के संरक्षण एवं जीवों सुरक्षा पर जोर देते हुए ग्रीन होलिका पर्व मनाने को लेकर बताया कि होली के दहन में पीपल के पेड़, शमी का वृक्ष, आम के पेड़, आंवले के पेड़, नीम के पेड़, केले के पेड़, अशोक के पेड़ और बेल के पेड़ की लकड़ियों का उपयोग कदापि नहीं करना चाहिए । क्योंकि इन पेड़ों को सनातन धर्म में शुभ माना जाता है। साथ ही कूड़ा करकट एवं हरे-भरे पेड़ों का भी होलिका दहन में उपयोग वर्जित है।
उन्होंने बताया कि शुद्ध देसी गाय के उपलों का प्रयोग करने से पर्यावरण की शुद्धि के साथ पुण्य की प्राप्ति करें और किसी भी प्रकार के रसायनयुक्त रंगों के प्रयोग से बचें। सभी सनातन प्रेमी कम से कम एक वृक्ष लगाकर इस बार होली मनाएं । जिससे हमारी पृथ्वी हरी भरी होकर सुन्दर वातावरण का निर्माण करे।
INPUT-VINAY CHATURVEDI