वट सावित्री व्रत,शनि जयंती,सोमवती अमावस्या पर्व : स्वामी पूर्णानंदपुरी जी

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सिकंदराराऊ : ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखकर कामना करतीं हैं जिसे वट सावित्री व्रत कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी तभी से सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं। वट सावित्री व्रत आज सम्पूर्ण देशभर में मनाया जा रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग बनने के कारण भी आज के दिन का महत्व और बढ़ रहा है।
यह जानकारी देते हुए ज्योतिर्विद एवं महामंडलेश्वर स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने वट सावित्री व्रत के विषय में बताया कि अमावस्या तिथि कल 29 मई सांय 02:55 मिनट से आरंभ हो चुकी है जो कि आज सांय 04:59 पर समाप्त होगी। वहीं 07:13 मिनट से कल सुबह 05: 09 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा।
स्वामी पूर्णानन्दपुरी ने बताया कि आज  सोमवती अमावस्या का भी शुभ संयोग बन रहा है। सोमवार के दिन अमावस्या होने के कारण सोमवती अमावस्या कहा जाता है। सोमवार को सर्वार्थ सिद्धि योग में अमावस्या तिथि आरंभ होने के साथ इस दिन बुधादित्य, वर्धमान, सुकर्मा और केदार नाम के भी शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन वृषभ राशि में सूर्य व बुध की युति होने से बुधादित्य योग नामक राजयोग बन रहा है। 30 मई को एक साथ 6 शुभ योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन शनिदेव अपनी स्वराशि कुंभ में विराजमान रहेंगे। देवगुरु बृहस्पति भी अपनी स्वराशि मीन में रहेंगे। इन दोनों ग्रहों के अपनी स्वराशि में होने से कुंभ व मीन राशि वालों को शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है।
सोमवार का दिन चंद्रमा का होता है। चंद्रमा औषधि, धन और मन का कारक माना गया है। वहीं अमावस्या तिथि पितरों की मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार, पितरों का निवास चंद्रमा के पिछले भाग में होता है। इसलिए पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध आदि जरूर करना चाहिए। इस दिन चंद्रमा उच्च राशि वृषभ में होने के कारण शुभ फल प्रदान करेंगे। वृषभ राशि के स्वामी ग्रह शुक्र हैं। शुक्र का सूर्य व चंद्रमा के साथ मित्रता का भाव है। ग्रहों की स्थिति से मनचाही सफलता हासिल हो सकती है।
स्वामी पूर्णानन्दपुरी महाराज के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या तिथि को कर्मफलदाता शनि देव का जन्म हुआ था उनकी माता छाया और पिता सूर्य देव हैं अतः आज का दिन एक अत्यंत शुभ एवं महत्वपूर्ण है शनि जयंती के अवसर पर शनि देव की पूजा करके साढ़ेसाती, ढैय्या और शनि दोष से राहत पा सकते है।सुकर्मा योग प्रात:काल से ही प्रारंभ हो जा रहा है प्रात: स्नान करने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करने के पश्चात पितरों को तृप्त करें उसके बाद दान पुण्य करें ।
वट सावित्री व्रत की पूजन विधि के विषय में जानकारी देते हुए स्वामी श्री पूर्णानन्दपुरी जी महाराज ने बताया कि वट सावित्री व्रत का फल भी करवा चौथ के व्रत के समान है इस व्रत को करने से महिलाओं को सदा सुहागन होने का वरदान प्राप्त होता है और इनके पति को लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य का भी वरदान प्राप्त होता है। व्रती महिलाओं को प्रातः स्नान करने के उपरांत सोलह सिंगार करके बरगद के पेड़ के पास जाकर कच्चा सूत बांधकर जल चढ़ाना चाहिए उसके बाद हल्दी कुमकुम या रोली का टीका लगाकर बरगद के वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए। यह व्रत करने वाली सुहागिन महिलाएं अपने सास को बायना भी देती हैं जिसमें सुहाग का पूरा सामान रखा जाता है,एक बांस की टोकरी में साड़ी, चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, काजल, फल, भीगा चना, पूड़ी रखकर अपनी सास को भेंट करना चाहिए ऐसा करने से सदा सुहागन होने का वरदान प्राप्त होता है और घर में सुख शांति समृद्धि बढ़ती है।

vinay

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